
पहले गुटों में बंटी थी भाजपा, नये शहर अध्यक्ष के बाद लगाम लगी, कुछ को पद तो कुछ को नियुक्ति की आस, उसके कारण खामोशी
- जब तक सब काम न हो तब तक गुटबाजी करना खुद का नुकसान, समझते है सब
अभिषेक आचार्य
RNE Special.
भाजपा संगठन चुनाव से पहले गुटबाजी का शिकार थी। अध्यक्ष बनने के लिए पार्टी में तीव्र गुटबाजी हुई। कुछ ने कार सेवा यानी विरोध का रास्ता अपनाया तो कुछ ने पोजेटिव रुख से अध्यक्ष बनना चाहा। कुछ अपने गुट के अगुवा बड़े नेताओं के सहारे वैतरणी पार करने के लिए प्रयास करते रहे। शहर अध्यक्ष न बनने तक ये गुटबाजी चरम पर थी। एक साथ कई धड़े सक्रिय थे, समर्थन व विरोध, दोनों में।
संगठन ने बड़ा निर्णय लिया और संभाग मुख्यालय बीकानेर के भाजपा अध्यक्ष पद पर निष्ठावान महिला नेत्री सुमन छाजेड़ को चुना। ये चुनाव पार्टी के लिए लाभकारी है, वो इससे साबित होता है कि उनके नाम का किसी ने विरोध नहीं किया। सांसद व केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल की सूझबूझ ने गुटबाजी की आग को पानी के छींटे से ठंडा किया। यही काम विधायक जेठानन्द व्यास व सिद्धि कुमारी ने किया। परिणाम ये रहा कि सुमन छाजेड़ स्वतः ही ताकतवर अध्यक्ष बन गई। उनको केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल व बीकानेर के दोनों विधायकों का साथ भी मिल गया।
दावेदार कुछ बोल भी नहीं पाए:
शहर अध्यक्ष पद के लिए सुमन छाजेड़ के अलावा चार प्रमुख दावेदार और थे। हरेक के पीछे कोई न कोई बड़ा नेता खड़ा था। फिर जब बड़े नेताओं ने ही नये अध्यक्ष पर मुहर लगा दी तो दावेदार क्या बोलते। उन्होंने आगे बढ़कर नये महिला अध्यक्ष का साथ और समर्थन कर दिया। सुमन छाजेड़ स्वतः ही पावरफुल अध्यक्ष बन गई।
अर्से बाद पावरफुल नया अध्यक्ष:
शहर भाजपा बीकानेर में प्रायः गुटबाजी का ही शिकार रही है। उसका संगठन पर असर भी पडा। कई बार अध्यक्ष अपने ही जन प्रतिनिधियों व बड़े नेताओं से अडता रहा और तालमेल बिगड़ता रहा। मगर नई अध्यक्ष सुमन छाजेड़ अब तक की सबसे पावरफुल अध्यक्ष साबित होगी, ये आसार लगते है। तभी तो नई कार्यकारिणी नहीं बनी मगर संगठन के सभी काम पूरी मेहनत से चल रहे है। ये बड़ी सफलता है।
पद की चाह ने लगाम कसी:
सब जानते है कि नई अध्यक्ष सुमन छाजेड़ की कार्यकारिणी बननी है और उसमें उनकी व उनके सभी जन प्रतिनिधियों की चलनी है। यदि अभी कोई उकचुक हुआ तो न पद मिलेगा और नियुक्ति का भी टोटा पड़ेगा। कई बार भय भी तो अनुशासन लाता है। उसका असर अभी भी दिख रहा है। वो रहेगा भी।
असल परीक्षा कार्यकारिणी के बाद:
जब शहर भाजपा की कार्यकारिणी बन जायेगी, तब जाकर असली चेहरा कई नेताओं का सामने आयेगा। कुछ नेता ऐसे है जो पार्टी में पद पाए बिना बैचेन हो जाते है। इस बार उनकी दाल गलती नहीं लगती, न तिकड़म चलती दिखती है। क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष ने साफ कह दिया है कि बारबार पदाधिकारी बनने वाले इस बार बाहर रहेंगे। 60 फीसदी से अधिक नये लोगों को कार्यकारिणी में लिया जायेगा। उसमें भी युवाओं व युवा महिलाओं को प्राथमिकता मिलेगी। इसी कारण कार्यकारिणी बनने के बाद ये पद चाहने वाले क्या करते है, देखने की बात होगी।